Tuesday, July 10, 2012

सहभागिता के बिना अधूरा है लोकतंत्र का मकसद

शनिवार सात जुलाई की संध्या सहभाग ने एक और पड़ाव पार किया। सहभागी लोकतंत्र यानी 'पार्टिसिपेट्री डेमोक्रेसी' के लिए प्रतिबद्घ इस संस्था के अनवरत सफर के सहयात्री बने वरिष्ठï पत्रकार विपुल मुदगल ने सहभाग से जुड़े 'सहभागियों' को अपने अनुभवों से रूबरू कराया। उनकी विशुद्घ अनुभवजन्य बातों से यही बात सामने आई कि सहभागी लोकतंत्र की अवधारणा को ग्रंथों को खंगालने और अकादमिक गलियारों में टहलने के बजाय विशुद्घ अनुभव से कहीं बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।
निश्चित रूप से आधुनिक समाज का आधार लोकतंत्र है और जन द्वारा जन के लिए विकसित की गई यही प्रणाली ही निर्विवाद रूप से सबसे बेहतर है। परंतु लोकतंत्र की सफलता बिना सहभागिता के संदिग्ध ही होती है। लोकतंत्र में जब तक लोक यानी जन सहभागी नहीं होंगे तब तक उसके मकसद को हासिल नहीं किया जा सकता है। सहभागी लोकतंत्र पर जोर देते हुए मुदगल ने कहा, 'लोकतंत्र में जन की सहभागिता के बिना उसे सफल नहीं बनाया जा सकता।' नीति निर्माण में स्थानीय तत्त्वों को शामिल किए जाने की वकालत करते हुए उन्होंने बताया, 'आपको सत्ता का विकेंद्रीकरण करना ही होगा और नीति निर्माण में स्थानीय लोगों को शामिल करना होगा।'
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की ध्वजवाहिका योजना महात्मा गांधी राष्टï्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि आपको स्थानीय जरूरतों के हिसाब से आवंटित कोष के उपयोग की आजादी देनी होगी। उनके अनुसार केंद्र की कई योजनाएं ऐसी होती हैं जिनका कई गांवों में कोई उपयोग नहीं होता, ऐसे में सोशल ऑडिटर्स के सामने बड़ी समस्या होती है क्योंकि वहां जो काम होता है वह मनरेगा के तहत अधिसूचित नहीं होता। इसलिए उन्होंने स्थानीय जरूरत के हिसाब से नीति निर्माण की बात की।
तमिल नाड़ के एक इलाके का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां महिलाएं किस तरह सैनेटरी नैपकिन बनाने के कामकाज से जुड़ी हैं जो न केवल किफायती है बल्कि रोजगार सृजन के साथ-साथ स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है। इसे भी उन्होंने एक तरह के सहभागी लोकतंत्र की मिसाल बताया जो महिलाओं को जागरूक बनाने के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त भी बना रहा है।
सहभागी लोकतंत्र के साथ ही मुदगल ने सामाजिक पूंजी निर्माण यानी सोशल कैपिटल फॉर्मेशन को भी बेहद जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि इस मामले में सरकार की मिड डे मील योजना बेहद प्रभावशाली रही है। इसमें तमाम गड़बडिय़ों की बात स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि फिर भी यह योजना बेहद लाभकारी साबित हुई है। इसी तरह मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार की बाबत उन्होंने कहा कि चाहे जो भी बात की जाए इसे महज इन बातों के चलते खारिज नहीं किया जा सकता है क्यूंकि इस योजना में वे लोकतंत्र को एक्शन में देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि मनरेगा समावेशी विकास में अहम भूमिका अदा कर रही है। - प्रणव सिरोही